3. निगमन
(1) राज्य शासन, यथाशक्य शीघ्र, अधिसूचना द्वारा, ऐसे दिनांक से जो कि अधिसूचना मण्डल का में उल्लिखित किया जाय, एक माध्यमिक शिक्षा मण्डल की स्थापना करेगा.
(2) मण्डल , माध्यमिक शिक्षा मण्डल के नाम से एक निगमित निकाय होगा और उसका शाश्वत उत्तराधिकार तथा उसकी एक सामान्य मुद्रा होगी और
उसे जंगम तथा स्थावर दोनों प्रकार की संपत्ति अर्जित करने तथा धारण करने की शक्ति प्राप्त होगी और उसे इस अधिनियम के अधीन किये गये उपबन्धों के अधीन रहते हुए,
उसके द्वारा धारण की गई किसी भी संपत्ति का अंतरण करने तथा संविदा करने तथा उसके गठन के प्रयोजनों के लिये आवश्यक समस्त अन्य कार्य करने की शक्ति प्राप्त होगी और वह उसके निगमित नाम से
वाद प्रस्तुत कर सकेगा या उसके विरुद्ध वाद प्रस्तुत किया जा सकेगा|
4. मण्डल का गठन
(1) मण्डल में सभापति तथा निम्नलिखित सदस्य होंगे, अर्थात् :-
पदेन सदस्य:-
(क) .आयुक्त, लोक शिक्षण
(ख). संचालक, तकनीकी शिक्षा
(ग). संचालक, चिकित्सा शिक्षा
(घ). आयुक्त, आदिम जाति विकास
(ड़). स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा नामनिर्दिष्ट एक अधिकारी जो उप सचिव की पंक्ति से नीचे का न हो
(च). आयुक्त, लोक शिक्षण द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाने वाला लोक शिक्षण संचालनालय का एक अधिकारी जो जो संयुक्त संचालक की पंक्ति से नीचे का न हो
(छ). संचालक, खेलकूद, खेलकूद तथा युवा कल्याण विभाग
(ज). विश्वविद्यालय का एक कुलसचिव जो कुलाधिपति द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाएगा
(झ). स्नाकोत्तर महाविद्यालय का एक प्राचार्य जो स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाएगा
(ञ). वित्त विभाग द्वारा नामनिर्दिष्ट एक अधिकारी जो उप सचिव की पंक्ति से नीचे का न हो
राज्य सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट सदस्य
(ट). राज्य शासन नामनिर्दिष्ट किये जाने वाले बीस सदस्य जिसमें निम्नलिखित सम्मिलित होंगे:-
1. छत्तीसगढ़ अधिनियम क्रमांक 31 सन् 1994 की धारा 3 (तीन) द्वारा नई धारा स्थापित.
(एक) मण्डल द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थाओं के तीन प्राचार्य/प्रधान अध्यापक जिनमें से एक महिला होगी.
(दो ) अध्यापक प्रशिक्षण संस्थाओं या प्रशिक्षण महाविद्यालयों का एक प्राचार्य.
(तीन) मण्डल द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थाओं के छ: अध्यापक जिनमें से कम से कम एक महिला होगी.
(चार) स्थानीय निकायों को सम्मिलित करते हुए प्रबन्ध का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन ऐसे व्यक्ति जो मण्डल द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थाएं चलाते हो.
(पांच) मध्यप्रदेश विधान सबा के पांच सदस्य.
(छह) ऐसे हित का प्रतिनिधित्व करने वाले दो व्यक्ति जिनका अन्यथा प्रतिनिधित्व न हुआ हो.
परन्तु खण्ड
(ट) के अधीन नामनिर्दिष्ट बीस सदस्यों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गो में से प्रत्येक के कम से कम दो सदस्य होंगे.
(2) प्रत्येक सदस्य का नाम मध्यप्रदेश राजपत्र में अधिसूचित किया जाएगा.
5. सभापति की नियुक्तितथा उसकी पदावधिएवं सेवा शर्ते
(1) सभापति ऐसा व्यक्ति होगा जो राज्य शासन द्वारा, इस संबंध में अधिसूचना द्वारा, नियुक्त किया जाय.
(2) सभापति की पदावधि तथा अन्य सेवा शर्त ऐसी होंगी जो कि नियमों द्वारा विहित की जाय
6. पदावधि एवं आकस्मिक रिक्त स्थानों की पूर्ति आदि.
1 [(1) * * * * * ]
1 [(2) * * * * * ]
1 [(3) * * * * * ]
2 [(4)नामनिर्दिष्ट सदस्यों की पदावधि, धारा 4 की उपधारा
(2) के अधीन नाम निर्देशन संबंधी अधिसूचना की तारीख से तीन वर्ष की होगी
परन्तु खण्ड
(ट) के उपखण्ड (पांच) के अधीन नामनिर्दिष्ट सदस्यों की पदावधि विधान सभा के साथ-साथ समाप्त हो जाएगी.
1 [(5) * * * * * ]
(6) यदि राज्य शासन का यह विचार हो कि किसी नामनिर्दिष्ट सदस्य का अपने पद पर बना रहना लोकहित में नहीं है, तो राज्य शासन उसका नाम निर्देशन समाप्त करने वाला आदेश दे सकेगा और तदुपरान्त वह इस बात के होते हुए भी कि वह अवधि जिसके लिये नामनिर्दिष्ट किया गया था, समाप्त नहीं हुई है, मण्डल का सदस्य नहीं रहेगा.
1 छत्तीसगढ़ अधिनियम क्रमांक 31 सन् 1994 की धारा 4 (चार) द्वारा लोप.
2. छत्तीसगढ़ अधिनियम क्रमांक 31 सन् 1994 की धारा 4 (चार) द्वारा प्रतिस्थापित.
[
(7) मण्डल का कोई भी नामनिर्दिष्ट सदस्य राज्य शासन को संबोधित किये गए पत्र द्वारा अपना पत्र त्याग सकेगा और उसे (पदत्याग को) राजपत्र में अधिसूचित किया जाएगा.]
[
(8) किसी सदस्य की मृत्यु, पदत्याग या नामनिर्देशन की समाप्ति के कारण से या किसी अन्य कारण से होने वाली आकस्मिक रिक्ति की दशा में ऐसी रिक्ति नामनिर्देशन द्वारा भरी जाएगी, तथा ऐसी रिक्ति के भरे जाने के लिए नामनिर्दिष्ट किया गया व्यक्ति उतनी अवधि तक उस पद पर रहेगा, जितनी अवधि तक कि वह व्यक्ति, जिसके स्थान पर वह इस प्रकार नामनिर्दिष्ट किया गया है, उस पद पर रहता और उससे अधिक नहीं.]
(9) बहिर्गामी सदस्य, यदि वह अन्यथा अर्ह हो, पुनर्निर्वाचन या पुनः नाम निर्देशन के लिये पात्र होगा.
[
(10) जहां कोई नामनिर्दिष्ट सदस्य सभापति की पूर्व अनुज्ञा के बिना मण्डल के तीन सम्मिलनों में लगातार स्वयं अनुपस्थित रहता है वहां यह समझा जाएगा कि उसने अपना पद त्याग दिया है.
11. मण्डल के किसी सम्मिलन के लिये गणपूर्ति सदस्यों की कुल संख्या के एक तिहाई से होगी.
8. मण्डल की शक्तियां:-
1. माध्यमिक शिक्षा की ऐसी शाखाओं में, जिन्हें वह उचित समझे, शिक्षण पाठ्यक्रम विहित करना
मण्डल द्वारा संचालित की गई परीक्षाओं में अनुचित साधन उपयोग में लाने वाले या परिक्षाओं में हस्तक्षेप करने वाले अभ्यर्थियों पर शास्तियां, अधिरोपित करने के लिये विनियम बनाना
2. ऐसे पाठ्यक्रमों पर आधारित परीक्षाओं का संचालन करना और उसके सहायक समस्त उपाय करना;
3.(ग) ऐसी अभ्यर्थियों को जिन्होंने -
(एक) मण्डल द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थाओं में ; या
(दो) प्रायवेट तौर पर ; शिक्षण के विहित पाठ्यक्रम का अध्ययन किया हो, ऐसी शर्तो पर, जैसी कि विहित की जायं परीक्षाओं प्रवेश देना.
4. [* * * * *]
5. अपनी परिक्षाओं के परीक्षा फल प्रकाशित करना
छत्तीसगढ़ अधिनियम क्रमांक 31 सन् 1994 की धारा 4 (चार) द्वारा प्रतिस्थापित.
छत्तीसगढ़ अधिनियम क्रमांक 11 सन् 1979 की धारा 5 द्वारा स्थापित की गई.
छत्तीसगढ़ अधिनियम क्रमांक 11 सन् 1979 की धारा 6 (एक) द्वारा अन्तः स्थापित की गई.
छत्तीसगढ़ अधिनियम क्रमांक 11 सन् 1979 की धारा 6 (दो) द्वारा परन्तुकों का लोप किया गया
(6. ) मण्डल की परीक्षाएं उत्तीर्ण करने वाले व्यक्तियों को उपाधिपत्र या प्रमाण-पत्र प्रदान करना.
(7 ) मध्यप्रदेश में स्थित संस्थाओं को मण्डल के विशेषाधिकार देने के प्रयोजनों के लिये उनको मान्यता प्रदान करना.
शालाओं या संस्थाओं को मान्यता प्रदान करने की शर्ते, जिनके अन्तर्गत अध्यापकों की सेवा शर्ते, उनकी अर्हताओं संबंधी शर्ते, उपस्कर भवन, तथा अन्य शैक्षणिक सुविधाओं संबंधी शर्ते भी आती हैं,विहित करना;
किसी संस्था की मान्यता को उस दशा में वापिस लेना जब कि जांच के पश्चात् मण्डल का यह समाधान हो जाय कि उसके विशेषाधिकारों का उस संस्था द्वारा दुष्प्रयोग किया जाता है, या यह कि ऐसी संस्था को मान्यता प्रदान करने के लिये मण्डल द्वारा अधिरोपित की गई शर्तों का अनुपालन नहीं किया जाना है:
परन्तु अमान्यता मामूली तौर से शैक्षणिक सत्र के मध्य में प्रवर्तित नहीं की जायेगी;
परन्तु यह और भी कि यदि अमान्यता शैक्षणिक सत्र के मध्य में प्रवर्तित की जाती है, तो इस प्रकार अमान्य की गई शाला के उन विद्यार्थियों को, जिन्हें कि मण्डल की परीक्षाओं में प्रवेश दिया गया होता, परीक्षा में प्रायवेट तौर पर बैठने के लिये अनुज्ञात किया जायगा.
8. मान्यता-प्राप्त संस्थाओं की या मान्यता के लिये आवेदन करने वाली संस्थाओं की दशा में के संबंध में 2[आयुक्त लोक शिक्षण] से रिपोर्ट तलब करना या ऐसी संस्थाओं के निरीक्षण का निर्देश देना;
9. मान्यता-प्राप्त संस्थाओं के विद्यार्थियों के शारीरिक, नैतिक तथा सामाजिक कल्याण में अभिवृद्धि करने के लिये उपाय ग्रहण करना और उनके निवास तथा अनुशासन की शर्ते विहित करना;
10. व्याख्यानों, प्रदर्शनी, शैक्षणिक प्रदर्शनियों का आयोजन करना और उनकी व्यवस्था करना तथा ऐसे अन्य उपाय करना जोकि माध्यमिक शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिये आवश्यक हो;
11. ऐसी शर्तो के अधीन, जो कि विहित की जाएं, छात्रवृत्तियां, पदक तथा पुरस्कार संस्थित करना और प्रदान करना;
12. ऐसी फीस की मांग करना, और प्राप्त करना, जोकि विहित की जाये, जिसमें रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन करने वाले शिक्षकों तथा प्रबंध समितियों की रजिस्ट्रीकरण फीस भी सम्मिलित है |
अपनी परीक्षाओं में उन अभ्यर्थियों को प्रवेश देना जिन्होंने मण्डल द्वारा संचालित पत्राचार पाठ्यक्रमों का परिशीलन किया है.
मध्यप्रदेश अधिनियम क्रमांक 11 सन् 1979 की धारा 6(तीन) द्वारा अन्तःस्थापित.
मध्यप्रदेश अधिनियम क्रमांक 31 सन् 1994 की धारा 5(एक) द्वारा शब्द संचालन लोक शिक्षण के स्थापन पर स्थापित किया गया.
मध्यप्रदेश अधिनियम क्रमांक 31 सन् 1994 की धारा 5(दो) द्वारा प्रतिस्थापित
मिडिल स्कूल तथा माध्यमिक शिक्षा में समन्वय सुनिश्चित करने की दृष्टि से मिडिल स्कूल शिक्षा के शिक्षण पाठ्यक्रम तथा पाठ्य विवरण के संबंध में राज्य शासन को सलाह देना;
(एक) माध्यमिक शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिये सम्मेलनों, विचार गोष्ठियों, परिसंवादों का आयोजन करना;
(दो) प्रश्न पत्र बनाने वालों के लिये कर्मशालाओं (वर्कशाप) तथा प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना;
(तीन) नवीनतम-मूल्यांकन प्रक्रियाओं में अन्वेषण तथा गवेषणायें, करके या अन्य प्रयोग करके शालाओं की पाठ्यचर्या का आधुनिकीकरण करने, विज्ञान तथा गणित की शिक्षा, कार्य अनुभव तथा व्यवसायीकरण को सुदृढ़ आधार प्रदान करने, के संबंध में आवश्यक उपाय करना;
(चार) परीक्षाओं को अधिक विधिमान्य, विश्वसनीय, व्यापक तथा विस्तृत बनाने के लिये समस्त आवश्यक उपाय करना;
(पांच) आकलित (क्यूमुलेटिव) अभिलेखों तथा आंतरिक निर्धारण संबंधी अभिलेखों के माध्यम से विद्यार्थियों के व्यापक मूल्यांकन के लिये व्यवस्था करना;]
ऊपर उल्लिखित किये गये प्रयोजनों में से किसी भी प्रयोजन से समनुषक्त या इस अधिनियम केउपबंधों को कार्यान्वित करने के प्रयोजन के लिये अन्य समस्त कार्य करना;
13. मण्डल का सदस्य होने के लिये निरर्हता:-
कोई भी व्यक्ति सदस्य के रुप में नाम निर्दिष्ट किया जाने या सदस्य के रुप में बना रहने के लिये निरर्हित होगा. यदि वह स्वयं या अपने भागीदार द्वारा प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः-
(क) किसी ऐसे प्रकाशन में, जो माध्यमिक शिक्षा देने वाली किसी संस्था में उपयोग में लाया जाने के लिये अध्ययन की पाठ्यपुस्तक के रुप में विहित किया गया हो, कोई अंश या हित रखता हो; या
(ख) किसी ऐसे कार्य में, जो मण्डल के लिये या मण्डल की ओर से किया गया हो, कोई अंश या हित रखता हो;
स्पष्टीकरणः- इस धारा के प्रयोजन के लिये किसी पाठ्यपुस्तक के प्रकाशन के अन्तर्गत उसका पुनः प्रकाशन भी आयेगा |
9. राज्य शासन शक्तिया:-
(1) राज्य शासन को यह अधिकार होगा कि वह मण्डल 3[ * * ] द्वारा संचालित की गई या की गई किसी बाद के संदर्भ में मण्डल को संबोधित करें और किसी भी विषय पर जिससे मण्डल 3[ * * ] का संबंध हो, अपने विचार संसूचित करें
(2) मंडल, ऐसी कार्यवाही की, यदि कोई हो, जैसी कि वह उस संसूचना पर करना प्रस्तावित करे या कर चुका हो, राज्य शासन को रिपोर्ट देगा और यदि वह वाही न कर पाये तो स्पष्टीकरण देगा.
1. मध्यप्रदेश अधिनियम क्रमांक 11 सन् 1979 की धारा 6 (चार) द्वारा अन्तः स्थापित की गई.
2. मध्यप्रदेश अधिनियम क्रमांक सन् 1979 द्वारा स्थापित.
3. मध्यप्रदेश अधिनियम क्रमांक 31 सन् 1994 की धारा 6 द्वारा लोप.
(3) यदि मण्डल युक्तियुक्त समय के भीतर राज्य शासन के समाधान योग्य कार्यवाही न करे, तो राज्य शासन मण्डल द्वारा दिये गये किसी भी स्पष्टीकरण या किये गये अभ्यावेदन पर विचार करने के पश्चात्, इस अधिनियम से संगत ऐसे निर्देश देगा जिन्हें कि वह उचित समझे और यथा स्थिति मण्डल 1[ * * ] ऐसे निर्देशों का पालन करेगा.
(4) यदि राज्य शासन की राय में किसी आपत्तिक स्थिति के कारण शीघ्र कार्यवाही करना अपेक्षित हो, तो राज्य शासन, मण्डल 1[ * * ] से पूर्व परामर्श किये बिना इस अधिनियम के अधीन, मण्डल 1[ * * ] की शक्तियों, में से ऐसी शक्ति का प्रयोग कर सकेगा जिसे कि वह उचित समझे और की गई कार्यवाही के संबंध में मण्डल को तत्काल इत्तिला देगा.
(5) राज्य शासन, मण्डल 1[ * * ] के किसी भी संकल्प या आदेश का निष्पादन, लिखित आदेश द्वारा, तत्संबंधी कारणों का उल्लेख करते हुये, निलंबित कर सकेगा, और ऐसे कार्य के किये जाने का प्रतिषेध कर सकेगा, जिसके कि किये जाने का मण्डल 1[ * * ] द्वारा आदेश दिया गया हो याजिसके किये जाने का मण्डल द्वारा आदेश दिया जाना अभिप्रेत हो, यदि राज्य शासन की यह राय हो कि ऐसा संकल्प, आदेश या कार्य इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन मण्डल 1[ * * ] की प्रदत्त शक्तियों की सीमा के बाहर है.
1[(6)* *** * ]
10. मण्डल निधि का गठन:-
मण्डल के लिये एक मंडल-निधि गठित की जायेगी, और इस अधिनियम के अधीन या अन्यथा मण्डल द्वारा या मण्डल की ओर से प्राप्त समस्त धनराशियां, उनके नामे जमा की जायेंगी
11. मण्डल निधि की अभिरक्षा और उसका विनिधान
मंडल-निधि में जमा संपूर्ण धन शासकीय कोषागार में या किसी बैंक में जैसा किमंडल, शासन के अनुमोदन से अवधारित करे, रखा जायेगा.
परन्तु इस धारा की किसी बात से यह नही समझा जायगा कि वह मण्डल को ऐसे धनों का, जो तत्काल व्यय के लिये अपेक्षित नहीं है, किन्हीं भी शासकीय प्रतिभूतियों में विनिधान करने सेप्रतिवारित करती है.
12. मण्डल निधि का उपयोग;-
इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुये, मंडल-निधि का उपयोग इस अधिनियम में उल्लिखित किये गये अनेक मामलों के प्रसंग में होने वाले प्रभारों तथा व्ययों कीदेनगी के लिये और ऐसी किसी भी अन्य प्रयोजन के लिये किया जायेगा जिसके लिये कि इसअधिनियम द्वारा या उसके अधीन मण्डल
1[ * * ] को शक्तियां प्रदान की गई हो या उस पर कर्त्तव्य अधिरोपित किये गये हो.
13. बजट:-
मण्डल आगामी वित्तीय वर्ष के लिये बजट ऐसी रीति में तैयार करेगा, जो कि विनियमों द्वारा विहित की जाय और उसे राज्य शासन की ओर उसकी मंजूरी के लिये ऐसे दिनांक को अग्रेषित करेगा जो ऐसे वित्तीय वर्ष के पूर्वगत इकतीस जनवरी के पश्चात् का न हो. राज्य शासनउसके संबंध में ऐसे आदेश पारित कर सकेगा, जिन्हें कि वह उचित समझे और मण्डल को ऐसे वित्तीयवर्ष के पूर्वगत 31 मार्च, तक उसकी संसूचना देगा और मण्डल ऐसे आदेशों को प्रभावी बनायेगा :
परन्तु यदि मण्डल की उपरिनिर्दिष्ट 31 मार्च तक मंजूरी की संसूचना न दी जाय तो बजट के संबंध में यह समझा जायेगा कि वह बिना किसी रुप भेदन के राज्य शासन द्वारा मंजूर कर लिया गया है.
1. मध्यप्रदेश अधिनियम क्रमांक 31 सन् 1994 की धारा 6 द्वारा लोप.
2. मध्यप्रदेश अधिनियम क्रमांक 31 सन् 1994 की धारा 7 द्वारा लोप.
(2) मंडल, यदि वह ऐसा करना उचित समझे, किसी भी वित्तीय वर्ष के दौरान, ऐसे वर्ष के लिये अनुपूरक बजट तैयार करेगा और उसे राज्य शासन् को उसकी मंजूरी के लिये ऐसे दिनांक को
प्रस्तुत करेगा जो उक्त वित्तीय वर्ष के इक्तीस अक्टूबर के पश्चात् का न हो, राज्य शासन उसके संबंध में ऐसे आदेश पारित कर सकेगा जिन्हें कि वह उचित समझे और मण्डल को उक्त वित्तीय वर्ष के तीस नवम्बर तक उसकी संसूचना देगा और मण्डल ऐसे आदेशों को प्रभावी बनायेगा ;
परन्तु यदि मण्डल को तीस नवम्बर तक मंजूरी की संसूचना न दी जाये, तो अनुपूरक बजट के संबंध में यह समझा जायेगा कि वह बिना किसी रुप भेदन के राज्य शासन द्वारा मंजूर कर दिया गया है
14. मण्डल के लेखाओं की लेखा -परीक्षा:-
मण्डल
1[* *] के लेखाओं की लेखा-परीक्षा प्रतिवर्ष ऐसे अभिकरण द्वारा की जायेगी जो कि राज्य शासन द्वारा उल्लिखित किया जाये और लेखा-परीक्षित लेखे और सन्तुलन-पत्र (बैलेन्स शीट) की एक प्रति मण्डल द्वारा राज्य शासन को प्रति वर्ष ऐसे दिनांक तक प्रस्तुत की जायेगी जिसे कि राज्य शासन नियमों द्वारा उल्लिखित करें.
15. सभापति की शक्तियां तथा कर्तव्य:-
(1.) सभापति का यह कर्तव्य होगा कि वह यह देखे कि इस अधिनियम का और सभापति की शक्तियां विनियमों का पालन निष्ठापूर्वक किया जा रहा है और उसे इस प्रयोजन के लिये आवश्यक समस्तशक्तियां प्राप्त होगी
(2.) सभापति, जब कभी वह उचित समझे, कम से कम पूरे 21 दिन की सूचना देने के पश्चात् सम्मिलन बुला सकेगा और ऐसी लिखित अधियाचना के, जो कि मण्डल के कम से कम 2[पंद्रह सदस्यों] द्वारा हस्ताक्षरित हो तथा जिसमें सम्मिलन के समक्ष लाये जाने वाले कामकाज का उल्लेख हो, प्राप्त होने के चौदह दिन के भीतर, ऐसा करने के लिये बाध्य होगा.
(3.) मण्डल के कामकाज से उत्पन्न होने वाली किसी आपत्तिक स्थिति में, जो कि सभापति की राय में यह अपेक्षा करती हो कि तत्काल कार्यवाही की जाये, सभापति ऐसी कार्यवाही करेगा जिसे कि वह आवश्यक समझे और तत्पश्चात् मण्डल को उसके आगामी सम्मिलन में, अपनी कार्यवाही की रिपोर्ट देगा.
(4.) सभापति ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग करेगा जो विनियमों द्वारा उसमें निहित की जाय.
(5.) सभापति एक लिखित आदेश द्वारा, जिसमें कि प्रत्यायोजित की गई शक्तियां उल्लिखित की गई हों, सचिव को ऐसी शक्तियां जो कि इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन सभापति को प्रदत्त की गई हों, प्रत्यायोजित कर सकेगा तथा ऐसे कर्त्तव्य, जो कि इस अधिनियम द्वारा उसके अधीन सभापति पर अधिरोपित किये गये हों, सौंप सकेगा.
16. उपसभापति की नियुक्ति, उसकी शक्तियां और उसके कर्तव्य:-
(1) राज्य शासन सभापति के परामर्श से किसी भी व्यक्ति को मण्डल का उपसभापति नियुक्त कर सकेगा.
(2) उपसभापति की पदावधि तथा अन्य सेवा-शर्ते ऐसी होगी जो कि नियमों द्वारा विहित की जायं.
(3) उपसभापति समस्त प्रशासनिक अथवा शैक्षणिक मामलों में सभापति की सहायता करेगा और सभापति की ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा जो कि सभा सभापति द्वारा उसे प्रत्यायोजित की जायं तथा सभापति के ऐसे कृत्यों का पालन करेगा जो कि सभापति द्वारा उसे सौंपे जायं.
1. मध्यप्रदेश अधिनियम क्रमांक 31 सन् 1994 की धारा 8 (आठ) द्वारा लोप.
2. शब्द बीस सदस्यों के स्थान पर मध्यप्रदेश क्रमांक 11 सन्, 1979 की धारा 9 (एक) द्वारा स्थापित किये गये.
3. मध्यप्रदेश अधिनियम क्रमांक 11 सन् 1979 की धारा 9 (दो) द्वारा अन्तः स्थापित की गई
17. मण्डल के पदाधिकारी तथा सेवक:-
(1). मण्डल का एक सचिव होगा, तथा उतने उप-सचिव होंगे जितने कि राज्य शासन आवश्यक समझे.
(2). सचिव तथा उपसचिवों की नियुक्ति राज्य शासन पर निर्भर होगी.
(3). मंडल, उपधारा (5) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, ऐसे पदाधिकारियों को, जिनके अंतर्गत सहायक सचिव तथा सेवक आते है, नियुक्त कर सकेगा जिन्हें कि वह अपने कृत्यों के दक्षतापूर्ण पालन के लिये आवश्यवक समझे.
(4 ). मण्डल के पदाधिकारियों तथा सेवकों की अर्हताएं, नियुक्ति और सेवा की शर्ते तथा वेतनमान –
(क). सचिव तथा उपसचिवों के संबंध में ऐसे होंगे, जैसे कि राज्य शासन द्वारा बनाये गये नियमों द्वारा उल्लिखित किये जायें; और
(ख). सहायक सचिवों, अन्य पदाधिकारियों तथा सेवकों के संबंध में ऐसे होंगे जैसे कि इस अधिनियम के अधीन बनाये गये विनियमों द्वारा अवधारित किये जायं.
(5) मण्डल राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन के सिवाय कोई पद सृजित नहीं करेगा |
18. सचिव की शक्तियांऔर कर्त्तव्य:-
1 सचिव, प्रधान प्रशासकीय पदाधिकारी होगा और सभापति के नियंत्रण के अधीन रहते हुये, ऐसे कर्त्तव्यों का पालन करेगा, जैसे कि उसे मण्डल द्वारा सौपे जायं.
2 सचिव, इस बात को देखने के लिये उत्तरदायी होगा कि संपूर्ण धन उन्हीं प्रयोजनोंपर व्यय किया जाता है जिनके लिये वह मंजूर किया गया है या बंटित किया गया हैं.
3 सचिव, मण्डल का कार्यवृत्त रखने के लिए उत्तरदायी होगा.
4 सचिव, मण्डल तथा कार्यपालिका समिति के किसी भी सम्मिलिन में उपस्थित रहनेका और बोलने का हकदार होगा किन्तु उसमें मत देने का हकदार नहीं होगा.
5 सचिव ऐसी अन्य शक्तियों को प्रयोग में लायेगा जो विनियमों में निर्धारित की गई हों|
19. कार्यपालिका समिति:-
(1) मण्डल में सदस्यों को सम्मिलित करते हुए एक कार्यपालिका समिति निम्नलिखित रुप में गठित की जाएगीः-
(क) सभापति;
(ख) आयुक्त, लोक शिक्षण;
(ग) आयुक्त, आदिम जाति विकास;
(घ) वित्त विभाग का प्रतिनिधित्व करने वाला एक सदस्य;
1. मध्यप्रदेश अधिनियम क्रमांक 11 सन् 1979 की धारा 10 (एक) द्वारा स्थापित की गई.
2. मध्यप्रदेश अधिनियम क्रमांक 31 सन् 1994 की धारा 9 द्वारा स्थापित.
3. मध्यप्रदेश अधिनियम क्रमांक 31 सन् 1994 की धारा 10 (दस) द्वारा नई धारा का स्थापन.
(2) .स्कूल शिक्षा विभाग का प्रतिनिधित्व करने वाला एक सदस्य;
(3). धारा 4 की उपधारा:-
(1) के खण्ड (ट) के उपखण्ड (एक) से छह के अधीन नामनिर्दिष्ट सदस्यों में से मण्डल द्वारा नामनिर्दिष्ट किये जाने वाले पांच सदस्य, जिनमें से (दो) उपखण्ड (पांच) के अधीन नामनिर्दिष्ट सदस्यों में से होगा.
(2) मण्डल का सभापति तथा सचिव, कार्यपालिका समिति के क्रमशः सभापति तथा सचिव के रुप में कार्य करेंगे.
(3) कार्यपालिका समिति तीन मास में कम से कम एक बार सम्मिलन करेगा, परन्तु सभापति यदि आवश्यक समझे तो किसी भी समय सम्मिलन बुला सकेगा ।
(4) कार्यपालिका समिति के सम्मिलन की गणपूर्ति पांच सदस्यों से होगी.
(5) कार्यपालिका समिति, मण्डल के सामान्य नियंत्रण निदेश और अधीक्षण के अधीन, मण्डल सक्षमता के भीतर किसी भी मामले में कार्यवाही करने के लिए सक्षम होगी.